Sleeper Cell Kaun Hote Hai (photo credit- social media)
Sleeper Cell Kaun Hote Hai (photo credit- social media)
Sleeper Cell का अर्थ: आज के समय में आतंकवाद के स्वरूप में कई परिवर्तन आए हैं। नई तकनीक, वैश्विक राजनीति और कट्टरपंथी विचारधाराओं ने आतंकवाद को और अधिक छिपा हुआ और संगठित बना दिया है। इस संदर्भ में "स्लीपर सेल" एक ऐसा शब्द बन गया है जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय है।
स्लीपर सेल की परिभाषा स्लीपर सेल क्या है?
‘स्लीपर सेल’ का मतलब है एक गुप्त आतंकवादी समूह, जो किसी देश में वर्षों तक सामान्य नागरिकों की तरह छिपा रहता है और एक विशेष समय पर सक्रिय होकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता है। ये सदस्य स्थानीय लोगों के बीच पूरी तरह से घुल-मिल जाते हैं, जिससे उनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है।
स्लीपर सेल की विशेषताएँ मुख्य विशेषताएँ:
1. दीर्घकालीन निष्क्रियता
2. स्थानीय जीवनशैली में घुलना
3. समय आने पर सक्रिय होना
4. आतंकवादी संगठनों से गुप्त संबंध
5. सीमित संवाद और उच्च गोपनीयता
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि स्लीपर सेल का इतिहास प्राचीन काल में:
गुप्तचर और छद्म योद्धाओं की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। भारत में चाणक्य के ‘सप्तांग सिद्धांत’ में गुप्तचर व्यवस्था का उल्लेख मिलता है।
आधुनिक युग में:20वीं शताब्दी में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कई देशों की खुफिया एजेंसियों ने स्लीपर एजेंटों का उपयोग किया।
स्लीपर सेल की कार्यप्रणाली स्लीपर सेल कैसे काम करते हैं?
1. चयन और भर्ती: स्थानीय युवाओं में कट्टरपंथी विचारधारा फैलाकर भर्ती किया जाता है।
2. प्रशिक्षण: हथियार चलाने और पहचान छिपाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
3. स्थानीय जीवन में एकीकृत करना: सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है।
4. सूचना संग्रहण: रणनीतिक स्थानों की जानकारी एकत्र करना।
5. निष्क्रियता और तत्परता: वर्षों तक निष्क्रिय रहकर आदेश की प्रतीक्षा करना।
भारत में स्लीपर सेल का संकट भारत में स्लीपर सेल का खतरा
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में स्लीपर सेल की उपस्थिति एक संवेदनशील मुद्दा है। यहाँ की खुली सीमाएँ और राजनीतिक विविधता आतंकवादी संगठनों को सक्रिय करने में मदद करती हैं।
प्रमुख घटनाएँ महत्वपूर्ण घटनाएँ:
1. 2008 मुंबई हमला: हमले से पहले आतंकवादियों को भारत में बसाया गया था।
2. 2011 दिल्ली हाई कोर्ट विस्फोट: हमलावर कई महीनों से सामान्य जीवन जी रहे थे।
3. ISIS स्लीपर सेल: NIA ने कई राज्यों में छापेमारी कर ISIS के स्लीपर सेल का खुलासा किया।
स्लीपर सेल की पहचान में चुनौतियाँ स्लीपर सेल की पहचान में कठिनाइयाँ
1. सामान्य जीवनशैली: ये लोग स्कूल, कॉलेज और नौकरी करते हैं।
2. प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग: VPN और एन्क्रिप्टेड ऐप्स का उपयोग करते हैं।
3. स्थानीय सहयोग: कई बार इन्हें स्थानीय स्तर पर मदद मिलती है।
4. खुफिया तंत्र की सीमाएँ: संसाधनों की कमी के कारण स्लीपर सेल पकड़ में नहीं आते।
स्लीपर सेल से निपटने के उपाय स्लीपर सेल से निपटने के उपाय
1. सूचना तंत्र को सशक्त बनाना: NIA, IB, RAW जैसी एजेंसियों को मजबूत करना।
2. समाज में जागरूकता: नागरिकों को संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देने के लिए प्रेरित करना।
3. साइबर निगरानी: डिजिटल गतिविधियों पर नजर रखना।
4. सीमा सुरक्षा: घुसपैठ रोकने के लिए तकनीक का उपयोग करना।
5. पुनर्वास और विमुक्तिकरण: कट्टरपंथी युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था।
वैश्विक स्तर पर स्लीपर सेल वैश्विक परिप्रेक्ष्य
अमेरिका में 9/11 के हमले में सऊदी अरब से आए एजेंटों ने वर्षों तक सामान्य जीवन जीया। यूरोप में कई आतंकी हमलों में स्लीपर सेल शामिल रहे हैं।
हाइब्रिड मिलिटेंट और स्लीपर सेल में अंतर हाइब्रिड मिलिटेंट बनाम स्लीपर सेल
हाइब्रिड आतंकवादी वे होते हैं जो सामान्य नागरिकों की तरह जीवन जीते हैं, जबकि स्लीपर सेल लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं।
भारत में स्लीपर सेल की घटनाएँ भारत में स्लीपर सेल की घटनाएँ
स्लीपर सेल का बढ़ता खतरा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है। सुरक्षा एजेंसियों ने कई आतंकवादी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है।
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